पकरिया का वह पचगँवा स्कूल सच कहे तो सहकारिता का एक बेजोड़ उदाहरण था जहाँ लोगो के सहयोग और एकता से स्थापना हुई थी ।
पकरिया स्कूल का नाम उन्होने पंचगँवा स्कूल रखा क्योकि यह स्कूल पाँच गाँव पकरिया , लटिया , कल्याणपुर ,दर्रीटांड और रसेडा़ के सहयोग से बना अतः इसका नाम माध्यमिक उच्च शाला पँचगँवा रखा गया था ।
यहाँ पर हमे यह भी समझना होगा कि ठाकुर दिलदार सिंग सेंगर क्या अकेले स्कूल नही चला सकते थे ? बिलकूल चला सकते थे परंतु एक एक मुट्ठी चांवल लेने से लोगो मे जो स्कूल और शिक्षा के प्रति प्रेम और सम्मान पैदा हुआ वह पूरी तरह निशुल्क शिक्षा से नही हो पाता । इस बात को गाँधी जी ने भी कहा था । गाँव के लोगो के सहयोग और लगन से बना स्कूल था भले ही उसमे उनका आँशिक सहयोग था पर अपनेपन की भावना थी अतः लोग बच्चो को पढ़ने " पंचगँवा स्कूल पकरिया " भेजने लगे । उस समय ठाकुर दिलदार सिंग सेंगर ध्रुव तारे के समान अकलतरा अंचल मे चमक रहे थे उनकी स्कूल के प्रति अनुराग देखकर और स्कूल खोल देने पर लोग उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे ।
लेकिन केवल 32 वर्ष की अल्प आयु मे सहकारिता , एकता और शिक्षा के प्रति ऐसा प्रेम रखने वाले ठाकुर दिलदार सिंग सेंगर जो अकलतरा अंचल के मालगुजारो मे ध्रुव तारे के समान चमक रहे थे अचानक ही केवल 39 साल की अवस्था मे अपने चाहने वालो को छोड़कर इस अंचल को सूना कर चले गये ।
उस समय के साक्षी रहे सयाने बताया करते थे कि उनके अंतिम संस्कार मे इस क्षेत्र और राष्ट्रीय स्तर के नेता ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर भी उन्हें अंतिम विदाई देने आए थे साथ ही प्रसिद्ध
साहित्यकार ज्वाला प्रसाद मिश्र सहित उस समय के गणमान्य नागरिक उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे थे उनकेस्त्रियो के प्रति विचारधारा के बारे उनके साथी बताया करते थे कि उन्होंने भाँप लिया था कि जब तक स्त्री शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेती तब तक समाज की प्रथम इकाई परिवार की की शिक्षा भी अधुरी होगी , इसलिए उन्होने उस समय जब स्त्रियो को केवल घर -गृहस्थी के कामो तक सीमित रखा जाता था ,पकरियाँ जैसे छोटे से गाँव मे स्त्री शिक्षा को विशेष महत्व दिया । ऐसे व्यक्तित्व के धनी दिलदार सिंग सेंगर सचमुच सिंह थे पर उनकी आवाज मे गर्जना की बजाय शिक्षा का अनुराग था ।
उनके व्यक्तित्व के बारे उनके बेटे ठाकुर बोधन सिंग बताया करते थे कि वे उँचे-पूरे डीलडौल के थे उनके व्यक्तित्व मे एक आकर्षण था जो सहज ही सबको अपनी ओर खीचता था ।
परंतु आज पकरिया का हाई स्कूल अपने जन्मदाता के नाम को तरस रहा है । पूर्व कलेक्टर जांजगीर ओ पी चौधरी ने भी प्रयास किया था कि वर्तमान हायर सेकेंडरी स्कूल पकरिया का नाम जो अब अपने मूल स्थान से अन्यत्र स्थापित है , को उसके जन्मदाता ठाकुर दिलदार सिंग सेंगर के नाम से जाना जाये परंतु ऐसा नही हो पाया ।
जैजैपुर विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक केशव चंद्रा ने भी प्रयास किया था , उन्होने शासन को पत्र लिखकर पकरिया स्कूल का नाम ठाकुर दिलदार सिंग के नाम पर हो पर धन्य है इस देश की राजनीति और उसका तंत्र जो इतने पुनित कार्य के लिए भी उनके परिजनो से जूते घिसवा रहा है परंतु उनके परिजनो ने अब भी आशा नही छोडी है और वे सतत प्रयास कर रहे है कि पकरिया हायर सेकेडरी स्कूल को उसकी असली पहचान मिले ।
अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या यह प्रशासन को ऐसे व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि स्वरूप हायर सेकेडरी स्कूल पकरिया का नाम उनके नाम पर रखे ऐसा क्या जरूरी नही लगता ? ब्रिटिश काल मे कवियो ,लेखको कलाकारो ने अपने स्तर पर देश के लिए काम किया । ठाकुर दिलदार सिंह सेंगर ने तो धरातलीय सत्य को समझा और शिक्षा को हथियार बना कर अग्रेजो के खिलाफ अपने स्तर पर लडा़ई लडी़ । अगर इस इतिहास के अनाम योद्धा को इतना भी न मिल पाये तो प्रशासन को खुद पर शर्मिंदा होना चाहिए ।
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