रतनपुर:-
छत्तीसगढ़ का पारंपरिक तीजा हरितालिका)व्रत-उत्सव
शुक्रवार को श्रद्धापूर्वक रतनपुर में मनाया गया । विशेषकर सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत करेंगी। व्रत से एक दिन पहले राज्य में व्रती महिलाओं के ‘करु भात’ खाने की परंपरा है। यानी यह व्रत सिर्फ धार्मिक न होकर एक तरह से वैज्ञानिक भी प्रतीत होता है, क्योंकि ‘करु भात’ का अर्थ विशेषकर करेले की सब्जी, दाल और चावल खाने से है।तीजा त्यौहार छत्तीसगढ़ में जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है। हरियाली तीज मुख्यत: स्त्रियों का त्यौहार है जो भादो महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। तीजा उत्सव के क्रम में सबसे पहले भादो महीने की द्वितीया तिथि को व्रत करने वाली महिलाएं रात्रि में करेले की सब्जी, दाल और चावल खाती हैं। तृतीया तिथि को निर्जला व्रत करती हैं तथा चतुर्थी की सुबह वे फलाहार या भोजन ग्रहण करती हैं। तीजा व्रत से पहले ‘करु भात’ यानी खासकर करेले की ही सब्जी खाने की मान्यता पर नजर डाली जाए तो यह काफी हद तक वैज्ञानिक या कहें स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद प्रतीत होता है।
दरअसल, हरी सब्जियों के बीच आकर्षित करने वाला करेला स्वाद में भले ही कड़वा लगता हो, लेकिन इससे होने वाले फायदे बहुत मीठे हैं। करेले में फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह कफ, कब्ज और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करता है। माना जाता है कि खून साफ करने के लिए भी करेला अमृत के समान है। मधुमेह में यह बेहद असरकारक माना जाता है।
मधुमेह में एक चौथाई कप करेले का रस, उतने ही गाजर के रस के साथ पीने पर लाभ मिलता है। इस बारे में पाटन में पदस्थ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. पार्वती कुर्रे ने बताया कि, करेले का जूस पीने से लीवर मजबूत होता है और लीवर की सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। करेले की पत्तियों या फल को पानी में उबालकर इसका सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और किसी भी प्रकार का संक्रमण ठीक हो जाता है। उल्टी-दस्त या हैजा हो जाने पर करेले के रस में काला नमक मिलाकर पीने से तुरंत आराम मिलता है।
उन्होंने कहा कि किडनी की समस्याओं में करेले का उबला पानी व करेले का रस दोनों ही बेहद लाभकारी होते हैं। यह किडनी को सक्रिय कर, हानिकारक तत्वों को शरीर से बाहर करने में मदद करता है। हृदय संबंधी समस्याओं के लिए करेला एक बेहतर इलाज है। यह हानिकारक वसा को हृदय की धमनियों में जमने नहीं देता जिससे रक्तसंचार व्यवस्थित बना रहता है और हार्ट अटैक की संभावना नहीं होती। कैंसर से लड़ने के लिए भी करेले के रस का सेवन बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है।
तीज पर्व की मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर शिव ने हरियाली तीज के दिन ही मां पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था। अखंड सौभाग्य का प्रतीक यह त्यौहार भारतीय परंपरा में पति-पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास कायम रखने का त्यौहार है। इसके आलावा यह पर्व पति-पत्नी को एक-दूसरे के लिए त्याग करने का संदेश भी देता है। इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं, वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण बनाए रखने की कामना करती हैं।
तीज पूजा विधि
तीज में हरी चूड़ियां, हरे वस्त्र पहनने, सोलह शृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है। इस त्यौहार में विवाह के पश्चात पहला तीजा आने पर नवविवाहित लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। परंपरा के अनुसार नव विवाहिता लड़की के ससुराल से इस त्यौहार पर सिंजारा भेजा जाता है जिसमें वस्त्र,आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, घेवर-फैनी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है। इस दिन महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती को चढ़ाना चाहिए।
कुंवारी लड़कियों के लिए हरतालिका तीज का महत्व
माता पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरुप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इसके लिए उन्होंने अपने हाथों से स्वयं शिवलिंग बनाया और उसकी विधि-विधान से पूजा की। इसके फलस्वरूप भगवान शिव उनको पति स्वरुप में प्राप्त हुए। कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की अभिलाषा से हरतालिका तीज का व्रत करती हैं ताकि उनको भी माता पार्वती की तरह ही मनचाहा वर प्राप्त हो सके।
करैहा पारा वार्ड नंबर 12 के पूर्व पार्षद प्रेमलता तंबोली के घर में तीज पूजा रखा गया था
आचार्य राजेंद्र तिवारी के द्वारा पूजा संपन्न कराया गया संतोषी सुनीता सुमन मीना कांता तथा मोहल्ले की बहुत सारी महिलाओं ने पूजा कर अपने पति की दीर्घायु की कामना की